Sunday, August 30, 2015

आरक्षण के मायने

पिछले दिनों जनसत्ता में छपे अपने लेख ''आरक्षण और बदलते इरादे ''में तवलीन सिंह ने बताया कि देश से आरक्षण खत्म होना चाहिए क्योंकी यह देश में परिवर्तन लाने में बाधक है|लेकिन यह किसका और कैसा परिवर्तन होगा , एक ऐसा परिवर्तन जो सिर्फ देश के बीस प्रतिशत सवर्णों के विकास की बात करता है, एक ऐसा परिवर्तन जो सदियों से विकास की दौड़ में आगे रहे लोगों को और आगे लाने की बात करता है ,एक ऐसा परिवर्तन जो देश के अस्सी प्रतिशत लोगो को भगवान भरोसे छोडकर सिर्फ बीस प्रतिशत लोगों की बात करता है|तवलीन सिंह के अनुसार ऐसा सिर्फ देश के कद्दावर प्रधानमन्त्री  नरेंद्र मोदी ही कर सकते है क्योंकी तीस साल बाद जनता इनको पूर्ण बहुमत में भेजा है तवलीन शायद यह भूल रही है इसमें आधे से अधिक  योगदान पिछड़े, दलितों का है|तवलीन सिंह को इस प्रकार की सलाह बी एच यू जैसी ब्राह्मणवादी यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाले कुछ छात्रों ने दिया इन छात्रों का मानना है कि इस यूनिवर्सिटी में सत्तर प्रतिशत छात्र आरक्षण के अंतर्गत आते है जो कि गलत है किसी के कहने पर ऐसे कैसे माना जा सकता है क्या तवलीन सिंह या छात्रों के पास इसका कोई विश्वसनीय आकड़ा है, इस प्रकार के वस्तुनिस्ट तथ्य के अभाव में, और सामाजिक न्याय में अवरोध पैदा करने वाली परम्परा में विश्वास करने वाली तवलीन सिंह क्या आपने बी एच यू के उन छात्रों से यह जानने का प्रयास किया इस यूनिवर्सिटी में ओबीसी,एससी, एसटी के कितने शिक्षक है अगर नही है तो क्यों? क्या यहा  आरक्षण नही लागू होता है? क्या सारे प्रतिभाशाली,विद्वान् सिर्फ सवर्णों के यहा जन्म लेते है कभी आप जैसी विचारधारा में विशवास रखने वालों ने पिछड़े, दलितों को आगे आने का अवसर ही नही दिया तो कैसे आपको पता चला कि सिर्फ सवर्ण ही परिवर्तन ला सकते है| तवलीन सिंह जैसे लोगो को यह नही पता होगा कि बी एच यू वही यूनिवर्सिटी है जहा आज भी पिछड़े, दलितों के साथ भेद भाव किया जाता रहा है,यह वही यूनिवर्सिटी है जहाँ दलित वर्ग के शिक्षक को लाइब्रेरी जाने से रोका गया है
                            तवलीन सिंह का मानना है आरक्षण का आधार जाति  न होकर आर्थिक होना चाहिए जोकि भारत जैसे विषमता भरे समाज में बिल्कुल गलत है क्या जो समाजिक स्थिति तवलीन सिंह की  है वही सामजिक स्थिति एक दलित महिला की भी है|एक दलित आर्थिक तौर पर सम्पन्न होते हुए भी सामाजिक तौर पर उतना सम्पन्न नहीं हो सकता जितना एक ब्राह्मण| हमारे संविधान के अनुच्छेद 15 (4 ) में कहा गया है कि राज्य सामाजिक,शैक्षिक रूप से पिछड़ों के लिए विशेष प्रावधान कर सकता है|
                       आज के समय में आरक्षण के लिए लड़ने वालों को ग्रामीण भारत का मालिक बताने वाली तवलीन सिंह ने उन ग्रामीणों का मजाक बनाया है जो राज्य और प्रकृति की आपदा से आत्महत्या किए  है तवलीन सिंह को लगता है कि जो लोग आरक्षण के लिए लड़ रहे है वे भारत के जमीदार है तो यह गलत है वास्तविकता यह है कि उनको अपनी पराधीनता का अहसास हो गया है, जिस दिन व्यक्ति को अपनी पराधीनता  का अहसास हो जाता है उसी दिन से वह अपनी मुक्ति के लिए संघर्ष करना आरम्भ कर देता है अब पिछड़ों दलितों को अपने अधिकारों का अहसास हो गया है जिसको पाने के लिए संघर्ष कर रहे है जो कुछ लोगों को नागवार लग रहा है|
       तवलीन सिंह का मानना है कि प्रधानमन्त्री के पास इस समय सुनहरा अवसर हैआरक्षण खत्म करके  इतिहास के पन्नो में नाम दर्ज कराने का, इनका मानना है की आरक्षण वर्तमान समय में कुछ राजनीतिक पार्टियों के लिए एक मुद्दा बन गया है|जबकि ऐसे कुकर्मो में  परिवर्तन लाने वाले  पार्टी के लोग भी है जहाँ एक तरफ प्रधानमंत्री कहते है ''बिहार को जाति की राजनीति से उपर उठाना होगा वरना बिहार का सार्वजनिक जीवन गल जाएगा'' तो दूसरी तरफ अमित शाह कहते है कि ''भाजपा ने देश को पहला ओबीसी प्रधानमंत्री दिया है| ''
              भारत जैसे देश में हमे जरूरत है ईमानदारी की राजनीति करने की जब तक ईमानदारी की राजनीति नही करेंगे तब तक वास्तविकता को छिपाते रहेंगे,समस्या का समाधान नही हो पाएगा और समतामूलक,सामाजिक न्याय से परिपूर्ण समाज नही स्थापित हो पाएगा तथा देश की मुलभूत समस्याओं शिक्षा, रोजगार गरीबी को हम इसी तरह दरकिनार करते रहेंगे |
        जैनबहादुर जौनपुर उत्तर प्रदेश 

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