Wednesday, September 2, 2015

अभिव्यक्ति के खतरे

भारत जैसे लोकतान्त्रिक देश में जहाँ अभिव्यक्ति लोगों को मौलिक अधिकार के रूप में प्रदान की गयी है वही अभिव्यक्ति कुछ लोगों के लिए मौत का कारण भी बन जाती है खासतौर पर उस समय जब उनकी अभिव्यक्ति देश के कुरीतियों, धार्मिक कर्मकांडो के खिलाफ हो|
कन्नड़ भाषा साहित्य के विद्वान् और साहित्य एकेडमिक पुरस्कार से सम्मानित एम एम कुलबर्गी की 30 अगस्त को हत्या शायद इसलिए कर दी गयी है कि इनका बोलना, लिखना कुछ लोगों को अच्छा नही लगता था| समाज में तर्कशीलता,वैज्ञानिकता, चेतना का संचार करने वाले कुलबर्गी कन्नड़ विश्वविद्यालय के कुलपति भी रह चुके थे, अपनी सतहत्तर साल की उम्र में 103 पुस्तकें और 400 लेख लिखने वाले कुलबर्गी सामाजिक अराजकतावादियों का शिकार होने वाले पहले व्यक्ति नही है इससे पहले भी गोविन्द पानसरे, नरेंद्र दाभोलकर की भी हत्या उन धार्मिक कर्मकांडों के खिलाफ बोलने के कारण हुई जिन कर्मकांडों से उनका अंतिम संस्कार किया गया|इनकी मृत्यु से उनका धर्म कितना समृद्ध हुआ होगा यह एक सोचनीय प्रश्न है| इन नवजागरणवादियों की हत्या यह साबित करती है कि हमारे समाज में अभी भी अन्धविश्वास, बाह्यआडम्बर जैसी कुरीतियाँ व्याप्त है|
   एम एम कुलबर्गी जैसे विद्वान् की हत्या हो जाने के पश्चात शोक सभाएं होती है लेकिन उतनी राजनीतिक सक्रियता नही दिखती जितनी एक आतंकवादी के फांसी को लेकर दिखती है शायद हमारे देश के राजनेताओं के लिए जितना महत्व एक आतंकवादी के फांसी का है उतना कुलबर्गी जैसे विद्वान् की हत्या का नही, कहा चले जाते है इण्डिया गेट पर कैंडिल मार्च निकलने वाले और जन्तर मंतर पर धरना देने वाले जब कुलबर्गी जैसे विद्वान् की हत्या सिर्फ बोलने के नाम पर कर दी जाती है| ऐसी कौन सी शक्ति हमारे समाज में पैदा हो गयी है जो हमारे अपने ही लोगों के लिए भय और खतरा बनती जा रही है और हम ऐसी घटनाओं को स्वीकार करते चले जा रहे है| इस प्रकार की अतिवादी शक्तियाँ अगर समाज में बढती रही और बोलने के बदले लोगों को मौत का सामना कराती रही तो वह दिन दूर नही जब एम एम कुलबर्गी की जगह हम और आप जैसे लोग होगे|
                      अत;समाज में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति को चाहिए ऐसी अराजकतावादी शक्तियों को न पैदा होने दे जो हमारे अपने ही समाज के लिए नासूर बनती चली जा रही है,हम सब लोगों को मिलकर ऐसी शक्तियों का सामाजिक बहिस्कार करना चाहिए ताकि हम और हमारी आने वाली पीढ़िया स्वतन्त्रतापूर्वक बोल सके|

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