Thursday, October 1, 2015

सुर्खियों से परे शिक्षा

भारत को एक वैश्विक आर्थिक महाशक्ति और डिजिटल इण्डिया बनाने के लिए प्रधानमंत्री की बेचैनी काबिले तारीफ़ है| सत्ता के चरमोत्कर्ष पर पहुचने वाली वर्तमान सरकार शायद यह भूल गयी है कि उसका यह सपना तब तक पूरा होना मुश्किल है, जब तक बच्चों को गुणवत्तापरक समतामूलक शिक्षा नही मिलती,जब तक शिक्षकों और राज्यों के बीच की लड़ाई समाप्त नही हो जाती, जब तक शिक्षा को नाचीज नही समझा जाएगा, जब तक देश के शत प्रतिशत लड़के लड़कियां स्कूल नही जाते| देश की वर्तमान सरकार द्वारा जितना प्रयास देश में बाजारवाद को बढ़ावा देने के लिए किया जा रहा है उतना प्रयास देश की मूलभूत आवश्कयताओं में अग्रणी शिक्षा को लेकर नही किया जा रहा है क्योंकी प्रधानमंत्री द्वारा जितने भी महत्वाकांक्षी शंखनाद,''मेक इन इंडिया,स्टैंडअप इंडिया,स्किल इंडिया,डिजिटल इंडिया'' किए गये है उनमें एक भी शंखनाद ऐसा नही है जो शिक्षा से सम्बन्धित हो,जोकि देश की सरकार की शिक्षायी विमर्श के प्रति विरक्ति मन बचन कर्म से सिध्द करता  है|
             शिक्षा का व्यक्ति के जीवन के साथ गहरा सम्बन्ध होने के साथ  इसको मौलिक अधिकार का दर्जा दिया गया है हमारे देश के प्रधानमंत्री को सोचना चाहिए कि किसी स्मार्टफोन में पड़ी किताब को पढ़ने के लिए देश के बच्चों को भी स्मार्ट शिक्षा की आवश्कयता है इसके लिए देश के सभी बच्चों को गुणवत्तापूर्ण सामान शिक्षा संसाधनों की जरूरत है| देश की सरकार को शिक्षा के प्रति अपने निष्ठुर ह्रदय को पिघलाना होगा और यह समझना होगा कि जिस देश में शिक्षक और राज्य संघर्षमय स्तिथि में हो उस देश में क्या बच्चों को गुणात्मक शिक्षा प्रदान की जा सकती है? जितनी क्षमता का उपयोग शिक्षक, शिक्षण प्रक्रिया को सम्पन्न करने में नही लगता उसकी कई गुना क्षमता का इस्तेमाल वह राज्यों से लड़ने में लगता है जिसके बदले में उसको लाठी चार्ज और नेताओं के अमर्यादित टिप्पणी का सामना करना पड़ता है|जाने माने लेखक और शिक्षाविद्द प्रो कृष्ण कुमार ने एक साक्षात्कार में कहा है कि''भारत में दरसल एक युद्ध लड़ा जा रहा है जिसमे राज्य सेनापति की भूमिका में है और यह युद्ध अध्यापक से लड़ा जा रहा है उसके पेशे,अस्मिताऔर उसके कार्य करने की शैली से लड़ा जा रहा है ''|
               शिक्षा का अधिकार अधिनियम लागू होने के बावजूद भी देश में शिक्षण प्रक्रिया चिंताजनक बनी हुई है बच्चें सीख नही रहे है,स्कूलों में भौतिक संसाधनों का अभाव पाया जा रहा है| प्रथम की रिपोर्ट 'असर' २०१४ में पाया गया कि कक्षा तीन के एक चौथाई बच्चें ही कक्षा दो के स्तर का पाठ पढ़ पाते है,कक्षा आठ के पच्चीस प्रतिशत बच्चें कक्षा दो के स्तर का पाठ नही पढ़ पाते है, देश के चौबीस प्रतिशत स्कूलों में पेयजल की उपलब्धता नही है,चौवालिस प्रतिशत स्कूलों में लड़कियों के उपयोग योग्य शौचालय नही है|यह आंकड़ा एक ऐसे देश की शिक्षा बदहाली हो दर्शाता है जिसको डिजिटल इंडिया बनाने की बात कही जा रही है |
                   प्रधानमंत्री के राजनीतिक संज्ञान से नदारद शिक्षा देश में कितनी गुणवत्तापरक,रोजगारपरक है इसका अंदाजा इस बात से लगा लेना चाहिए कि जिस देश में पीएचडी डिग्री धारक युवा चपरासी की नौकरी के लिए आवेदन करने को मजबूर हो उस देश की शिक्षा कितनी कौशल पर आधारित होगी|देश की शिक्षा के  बद से बदतर होते हालत को सुधारने के लिए  केंद्र के साथ राज्य सरकारों को मिलकर कार्य करना होगा और उस कड़वे सच को स्वीकार करना जिसको हमारे देश की न्यायपालिका(इलाहबाद हाईकोर्ट) ने एक फैसले में यह कहते हुए स्वीकार किया कि राज्य में  समान शिक्षा प्रणाली लागू हो जिसमें मंत्री और संत्री के बच्चें साथ पड़ेंगें|
                  कितना अच्छा होता अगर देश  की सरकार के घोषणा में एक घोषणा ''मुफ्त अनिवार्य समतामूलक गुणवत्तापरक समान शिक्षा प्रणाली ''का होता तो शायद यह शिक्षा में ऐतिहासिक फैसला होने के साथ इसके लिए वर्षो से कुछ शिक्षाविदों द्वारा लड़ी जा रही  लड़ाई भी सफल हो जाती| लेकिन शायद देश को विरासत में मिली असमानता को देश के राजनेता बरकरार रखना चाहते है क्योंकी उनको ईमानदारी और समानता की राजनीति करने से डर लगता है |
              जैनबहादुर   जौनपुर 

Wednesday, September 2, 2015

अभिव्यक्ति के खतरे

भारत जैसे लोकतान्त्रिक देश में जहाँ अभिव्यक्ति लोगों को मौलिक अधिकार के रूप में प्रदान की गयी है वही अभिव्यक्ति कुछ लोगों के लिए मौत का कारण भी बन जाती है खासतौर पर उस समय जब उनकी अभिव्यक्ति देश के कुरीतियों, धार्मिक कर्मकांडो के खिलाफ हो|
कन्नड़ भाषा साहित्य के विद्वान् और साहित्य एकेडमिक पुरस्कार से सम्मानित एम एम कुलबर्गी की 30 अगस्त को हत्या शायद इसलिए कर दी गयी है कि इनका बोलना, लिखना कुछ लोगों को अच्छा नही लगता था| समाज में तर्कशीलता,वैज्ञानिकता, चेतना का संचार करने वाले कुलबर्गी कन्नड़ विश्वविद्यालय के कुलपति भी रह चुके थे, अपनी सतहत्तर साल की उम्र में 103 पुस्तकें और 400 लेख लिखने वाले कुलबर्गी सामाजिक अराजकतावादियों का शिकार होने वाले पहले व्यक्ति नही है इससे पहले भी गोविन्द पानसरे, नरेंद्र दाभोलकर की भी हत्या उन धार्मिक कर्मकांडों के खिलाफ बोलने के कारण हुई जिन कर्मकांडों से उनका अंतिम संस्कार किया गया|इनकी मृत्यु से उनका धर्म कितना समृद्ध हुआ होगा यह एक सोचनीय प्रश्न है| इन नवजागरणवादियों की हत्या यह साबित करती है कि हमारे समाज में अभी भी अन्धविश्वास, बाह्यआडम्बर जैसी कुरीतियाँ व्याप्त है|
   एम एम कुलबर्गी जैसे विद्वान् की हत्या हो जाने के पश्चात शोक सभाएं होती है लेकिन उतनी राजनीतिक सक्रियता नही दिखती जितनी एक आतंकवादी के फांसी को लेकर दिखती है शायद हमारे देश के राजनेताओं के लिए जितना महत्व एक आतंकवादी के फांसी का है उतना कुलबर्गी जैसे विद्वान् की हत्या का नही, कहा चले जाते है इण्डिया गेट पर कैंडिल मार्च निकलने वाले और जन्तर मंतर पर धरना देने वाले जब कुलबर्गी जैसे विद्वान् की हत्या सिर्फ बोलने के नाम पर कर दी जाती है| ऐसी कौन सी शक्ति हमारे समाज में पैदा हो गयी है जो हमारे अपने ही लोगों के लिए भय और खतरा बनती जा रही है और हम ऐसी घटनाओं को स्वीकार करते चले जा रहे है| इस प्रकार की अतिवादी शक्तियाँ अगर समाज में बढती रही और बोलने के बदले लोगों को मौत का सामना कराती रही तो वह दिन दूर नही जब एम एम कुलबर्गी की जगह हम और आप जैसे लोग होगे|
                      अत;समाज में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति को चाहिए ऐसी अराजकतावादी शक्तियों को न पैदा होने दे जो हमारे अपने ही समाज के लिए नासूर बनती चली जा रही है,हम सब लोगों को मिलकर ऐसी शक्तियों का सामाजिक बहिस्कार करना चाहिए ताकि हम और हमारी आने वाली पीढ़िया स्वतन्त्रतापूर्वक बोल सके|

Sunday, August 30, 2015

आरक्षण के मायने

पिछले दिनों जनसत्ता में छपे अपने लेख ''आरक्षण और बदलते इरादे ''में तवलीन सिंह ने बताया कि देश से आरक्षण खत्म होना चाहिए क्योंकी यह देश में परिवर्तन लाने में बाधक है|लेकिन यह किसका और कैसा परिवर्तन होगा , एक ऐसा परिवर्तन जो सिर्फ देश के बीस प्रतिशत सवर्णों के विकास की बात करता है, एक ऐसा परिवर्तन जो सदियों से विकास की दौड़ में आगे रहे लोगों को और आगे लाने की बात करता है ,एक ऐसा परिवर्तन जो देश के अस्सी प्रतिशत लोगो को भगवान भरोसे छोडकर सिर्फ बीस प्रतिशत लोगों की बात करता है|तवलीन सिंह के अनुसार ऐसा सिर्फ देश के कद्दावर प्रधानमन्त्री  नरेंद्र मोदी ही कर सकते है क्योंकी तीस साल बाद जनता इनको पूर्ण बहुमत में भेजा है तवलीन शायद यह भूल रही है इसमें आधे से अधिक  योगदान पिछड़े, दलितों का है|तवलीन सिंह को इस प्रकार की सलाह बी एच यू जैसी ब्राह्मणवादी यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाले कुछ छात्रों ने दिया इन छात्रों का मानना है कि इस यूनिवर्सिटी में सत्तर प्रतिशत छात्र आरक्षण के अंतर्गत आते है जो कि गलत है किसी के कहने पर ऐसे कैसे माना जा सकता है क्या तवलीन सिंह या छात्रों के पास इसका कोई विश्वसनीय आकड़ा है, इस प्रकार के वस्तुनिस्ट तथ्य के अभाव में, और सामाजिक न्याय में अवरोध पैदा करने वाली परम्परा में विश्वास करने वाली तवलीन सिंह क्या आपने बी एच यू के उन छात्रों से यह जानने का प्रयास किया इस यूनिवर्सिटी में ओबीसी,एससी, एसटी के कितने शिक्षक है अगर नही है तो क्यों? क्या यहा  आरक्षण नही लागू होता है? क्या सारे प्रतिभाशाली,विद्वान् सिर्फ सवर्णों के यहा जन्म लेते है कभी आप जैसी विचारधारा में विशवास रखने वालों ने पिछड़े, दलितों को आगे आने का अवसर ही नही दिया तो कैसे आपको पता चला कि सिर्फ सवर्ण ही परिवर्तन ला सकते है| तवलीन सिंह जैसे लोगो को यह नही पता होगा कि बी एच यू वही यूनिवर्सिटी है जहा आज भी पिछड़े, दलितों के साथ भेद भाव किया जाता रहा है,यह वही यूनिवर्सिटी है जहाँ दलित वर्ग के शिक्षक को लाइब्रेरी जाने से रोका गया है
                            तवलीन सिंह का मानना है आरक्षण का आधार जाति  न होकर आर्थिक होना चाहिए जोकि भारत जैसे विषमता भरे समाज में बिल्कुल गलत है क्या जो समाजिक स्थिति तवलीन सिंह की  है वही सामजिक स्थिति एक दलित महिला की भी है|एक दलित आर्थिक तौर पर सम्पन्न होते हुए भी सामाजिक तौर पर उतना सम्पन्न नहीं हो सकता जितना एक ब्राह्मण| हमारे संविधान के अनुच्छेद 15 (4 ) में कहा गया है कि राज्य सामाजिक,शैक्षिक रूप से पिछड़ों के लिए विशेष प्रावधान कर सकता है|
                       आज के समय में आरक्षण के लिए लड़ने वालों को ग्रामीण भारत का मालिक बताने वाली तवलीन सिंह ने उन ग्रामीणों का मजाक बनाया है जो राज्य और प्रकृति की आपदा से आत्महत्या किए  है तवलीन सिंह को लगता है कि जो लोग आरक्षण के लिए लड़ रहे है वे भारत के जमीदार है तो यह गलत है वास्तविकता यह है कि उनको अपनी पराधीनता का अहसास हो गया है, जिस दिन व्यक्ति को अपनी पराधीनता  का अहसास हो जाता है उसी दिन से वह अपनी मुक्ति के लिए संघर्ष करना आरम्भ कर देता है अब पिछड़ों दलितों को अपने अधिकारों का अहसास हो गया है जिसको पाने के लिए संघर्ष कर रहे है जो कुछ लोगों को नागवार लग रहा है|
       तवलीन सिंह का मानना है कि प्रधानमन्त्री के पास इस समय सुनहरा अवसर हैआरक्षण खत्म करके  इतिहास के पन्नो में नाम दर्ज कराने का, इनका मानना है की आरक्षण वर्तमान समय में कुछ राजनीतिक पार्टियों के लिए एक मुद्दा बन गया है|जबकि ऐसे कुकर्मो में  परिवर्तन लाने वाले  पार्टी के लोग भी है जहाँ एक तरफ प्रधानमंत्री कहते है ''बिहार को जाति की राजनीति से उपर उठाना होगा वरना बिहार का सार्वजनिक जीवन गल जाएगा'' तो दूसरी तरफ अमित शाह कहते है कि ''भाजपा ने देश को पहला ओबीसी प्रधानमंत्री दिया है| ''
              भारत जैसे देश में हमे जरूरत है ईमानदारी की राजनीति करने की जब तक ईमानदारी की राजनीति नही करेंगे तब तक वास्तविकता को छिपाते रहेंगे,समस्या का समाधान नही हो पाएगा और समतामूलक,सामाजिक न्याय से परिपूर्ण समाज नही स्थापित हो पाएगा तथा देश की मुलभूत समस्याओं शिक्षा, रोजगार गरीबी को हम इसी तरह दरकिनार करते रहेंगे |
        जैनबहादुर जौनपुर उत्तर प्रदेश 

Monday, August 3, 2015

महिला हिंसा

अभी हाल ही में राष्ट्रीय  महिला आयोग द्वारा 1 अप्रैल २०१५ से लेकर संभवत ३१ जुलाई २०१५ तक देश में महिलाओं के साथ होने वाले घरेलू हिंसा और बलात्कार का आंकड़ा प्रस्तुत किया गया,  यह आंकड़ा ९७०० हैं, जो एक आश्चर्यचकित  कर देने वाला आंकड़ा हैं| इस आंकड़े में पहला स्थान उत्तर प्रदेश (६११०), दूसरा दिल्ली (११७९), तीसरा हरियाणा (५०४), चौथा राजस्थान (४४७) और पांचवा बिहार (२५६) का हैं| यह आंकड़ा साबित करता हैं कि हमारे देश में महिलाएं कितनी महफूज हैं और हमारी सरकार और पुरुषवादी समाज महिलाओं के  प्रति कितना संवेदनशील हैं|
      इस आंकड़े को देश की महिला और बाल विकास मंत्री श्रीमती मेनका गाँधी द्वारा लोकसभा में ऐसे प्रस्तुत किया जा रहा था, मानो देश को कोई उपलब्धि प्राप्त हो गई हो| देश की सरकार को सबसे बड़ा संतोष संभवतः इस बात का होगा कि महिलाओं के साथ होने वाली हिंसाओं का सर्वोच्च आंकड़ा किसी उनकी पार्टी द्वारा शासित राज्य में नहीं हैं| शायद राष्ट्रीय पार्टियाँ अपने द्वारा शासित राज्य में होने वाली घटनाओं के प्रति अपना  उत्तरदायित्व समझती हैं| राजनीतिक पार्टियों को जितनी फ़िक्र अपनी कुर्सी या सत्ता की होती है ,उतनी महिलाओं के साथ होने वाली घरेलू हिंसा और बलात्कार की नही ,संभवत इसलिए कि इस प्रकार के सारे अपराध किसी राजनेता के सगे संबंधियों के साथ न होकर एक गरीब ,लाचार,बेसहारा महिलाओं के साथ होता हैं जो शोषण का तो शिकार होती ही है अगर इसके खिलाफ बोलती है तो उनको धमकाया जाता है या उनकी आवाज को गलत साबित कर दिया जाता है क्योकि हमारे देश में गरीबों को इन्सान कहा समझा जाता है |
                      महिलाओं के साथ होने वाली घरेलू हिंसा ,बलात्कार सार्वजनिक कार्य स्थल पर यौन शोषण जैसे जघन्य अपराध सिर्फ़ उत्तर प्रदेश ,दिल्ली ,बिहार ,हरियाणा जैसे राज्यों में ही नही बल्कि सम्पूर्ण देश में होते है जो हमारे देश के चरित्र पर प्रश्न चिन्ह लगाते है जिस देश में स्त्रियों को सुरक्षा नही प्रदान की जा सकती ,जंहा स्त्रियाँ स्वतंत्र रूप से सार्वजनिक स्थानों का उपयोग नही कर सकती उस देश को ''मेक इन इंडिया'',  ''स्किल डवलपमेंट'' का नारा देना ब्यर्थ है |
                देश की राजनीतिक पार्टियों को आरोप-प्रत्यारोप ,जाति,धर्म और वोट की राजनीति से ऊपर उठकर मानवता और समतामूलक समाज की स्थापना के लिए कार्य करना होगा |जिससे महिला पुरुष का समाजीकरण समान रूप से किया जा सके इसके लिए देश की सरकार के साथ साथ व्यक्तिगत तौर पर भी लोगों को अपनी सोच और समझ बदलनी होगी ,जरूरत है हमे उस कारण का पता लगाना कि स्त्री की कोख से जन्म लेने वाला पुरुष स्त्री को माँ ,बहन ,पत्नी और देवी के रूप में पूजते पूजते उसी स्त्री को अपनी हवस का शिकार क्यों बनता है ,ऐसी कौन सी कमी हमारे संस्कार ,शिक्षा में रह जाती है जो हमें घरेलू हिंसा ,बलात्कार .सार्वजनिक स्थलों पर यौन शोषण करने को मजबूर करते है |
                आखिर वह दिन कब आएगा जब इस प्रकार के आंकड़े आने बंद हो जायेंगे और एक महिला स्वतंत्र और सुरक्षित तौर पर चिंतन ,कर्म करते हुए अपनी सामाजिक गतिविधियों को सम्पन्न कर पाएगी .वो दिन कब आएगा जब निर्भया कांड ,आरुषि कांड जैसी घटनाएँ होना बंद हो जाएंगी | क्या यही था गाँधी के सपनों का भारत कि आए दिन देश में घरेलू हिंसा ,बलात्कार जैसी घटनाए होती रहे , इस पुरूषवादी समाज में पुरूषों को महिलाओं के प्रति अपनी नजर और भूमिका के निर्धारण में परिवर्तन करना होगा |

                                                                                                   जैनबहादुर