Monday, August 3, 2015

महिला हिंसा

अभी हाल ही में राष्ट्रीय  महिला आयोग द्वारा 1 अप्रैल २०१५ से लेकर संभवत ३१ जुलाई २०१५ तक देश में महिलाओं के साथ होने वाले घरेलू हिंसा और बलात्कार का आंकड़ा प्रस्तुत किया गया,  यह आंकड़ा ९७०० हैं, जो एक आश्चर्यचकित  कर देने वाला आंकड़ा हैं| इस आंकड़े में पहला स्थान उत्तर प्रदेश (६११०), दूसरा दिल्ली (११७९), तीसरा हरियाणा (५०४), चौथा राजस्थान (४४७) और पांचवा बिहार (२५६) का हैं| यह आंकड़ा साबित करता हैं कि हमारे देश में महिलाएं कितनी महफूज हैं और हमारी सरकार और पुरुषवादी समाज महिलाओं के  प्रति कितना संवेदनशील हैं|
      इस आंकड़े को देश की महिला और बाल विकास मंत्री श्रीमती मेनका गाँधी द्वारा लोकसभा में ऐसे प्रस्तुत किया जा रहा था, मानो देश को कोई उपलब्धि प्राप्त हो गई हो| देश की सरकार को सबसे बड़ा संतोष संभवतः इस बात का होगा कि महिलाओं के साथ होने वाली हिंसाओं का सर्वोच्च आंकड़ा किसी उनकी पार्टी द्वारा शासित राज्य में नहीं हैं| शायद राष्ट्रीय पार्टियाँ अपने द्वारा शासित राज्य में होने वाली घटनाओं के प्रति अपना  उत्तरदायित्व समझती हैं| राजनीतिक पार्टियों को जितनी फ़िक्र अपनी कुर्सी या सत्ता की होती है ,उतनी महिलाओं के साथ होने वाली घरेलू हिंसा और बलात्कार की नही ,संभवत इसलिए कि इस प्रकार के सारे अपराध किसी राजनेता के सगे संबंधियों के साथ न होकर एक गरीब ,लाचार,बेसहारा महिलाओं के साथ होता हैं जो शोषण का तो शिकार होती ही है अगर इसके खिलाफ बोलती है तो उनको धमकाया जाता है या उनकी आवाज को गलत साबित कर दिया जाता है क्योकि हमारे देश में गरीबों को इन्सान कहा समझा जाता है |
                      महिलाओं के साथ होने वाली घरेलू हिंसा ,बलात्कार सार्वजनिक कार्य स्थल पर यौन शोषण जैसे जघन्य अपराध सिर्फ़ उत्तर प्रदेश ,दिल्ली ,बिहार ,हरियाणा जैसे राज्यों में ही नही बल्कि सम्पूर्ण देश में होते है जो हमारे देश के चरित्र पर प्रश्न चिन्ह लगाते है जिस देश में स्त्रियों को सुरक्षा नही प्रदान की जा सकती ,जंहा स्त्रियाँ स्वतंत्र रूप से सार्वजनिक स्थानों का उपयोग नही कर सकती उस देश को ''मेक इन इंडिया'',  ''स्किल डवलपमेंट'' का नारा देना ब्यर्थ है |
                देश की राजनीतिक पार्टियों को आरोप-प्रत्यारोप ,जाति,धर्म और वोट की राजनीति से ऊपर उठकर मानवता और समतामूलक समाज की स्थापना के लिए कार्य करना होगा |जिससे महिला पुरुष का समाजीकरण समान रूप से किया जा सके इसके लिए देश की सरकार के साथ साथ व्यक्तिगत तौर पर भी लोगों को अपनी सोच और समझ बदलनी होगी ,जरूरत है हमे उस कारण का पता लगाना कि स्त्री की कोख से जन्म लेने वाला पुरुष स्त्री को माँ ,बहन ,पत्नी और देवी के रूप में पूजते पूजते उसी स्त्री को अपनी हवस का शिकार क्यों बनता है ,ऐसी कौन सी कमी हमारे संस्कार ,शिक्षा में रह जाती है जो हमें घरेलू हिंसा ,बलात्कार .सार्वजनिक स्थलों पर यौन शोषण करने को मजबूर करते है |
                आखिर वह दिन कब आएगा जब इस प्रकार के आंकड़े आने बंद हो जायेंगे और एक महिला स्वतंत्र और सुरक्षित तौर पर चिंतन ,कर्म करते हुए अपनी सामाजिक गतिविधियों को सम्पन्न कर पाएगी .वो दिन कब आएगा जब निर्भया कांड ,आरुषि कांड जैसी घटनाएँ होना बंद हो जाएंगी | क्या यही था गाँधी के सपनों का भारत कि आए दिन देश में घरेलू हिंसा ,बलात्कार जैसी घटनाए होती रहे , इस पुरूषवादी समाज में पुरूषों को महिलाओं के प्रति अपनी नजर और भूमिका के निर्धारण में परिवर्तन करना होगा |

                                                                                                   जैनबहादुर















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